ध्यान


वैसे देखने जाए तो ध्यान एक विश्राम है !!ध्यान के समय में कुदरत को इधर उधर बिखरी हुए को जैसे योग्य स्थिति में पुनः आ जाने की अनुकूलता मिल जाती है ! प्रत्येक ध्यान के समय नया उदय =विकास करने की शक्ति मन एवं शरीर दोनों में आती है ! और ध्यान के बाद प्रथम सत्व गुन ही प्रगट होता है !इस महाकाल के नृत्य की गूंज को सुनकर जो बेध्यान बन जाता है वो ध्यानी है !!


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