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सितंबर 23, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्यों होता है यह राग भंग ?

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हमारी इच्छाओ के अनुसार ही हो जाये !!!यह तो जुआरी जैसी बात बन गई !! यहाँ तो केवल राजा  रानी  या तो किंग क्रोस का सिक्का उछल कर नंबर देखना होगा | हम जो चाहे है वैसा नहीं होता है तो हम दुखी हो जाते है ,गुस्सा करते है !!बस प्रतिकुलताये हमें पसंद ही नहीं !! अरे ध्यान से देखो - यह अनुकूलता का भी लय बध्ध  ताल ही है | जब अनुकूल पवन चलता है तब हमारा सभी कम बड़ी आसानी से होता रहता है . जिसका हमें आनंद होता है . यह राग अच्छा लगता  है . किन्तु  जो प्रतिकूल होता है तब कोई काम  सीधा नहीं होता यह अराग है !! जो हमें पसंद नहीं है . कौन करता है यह सब  ? यही तो प्रकृति की माया है !! ऋतू ओ की मज़ा लेते है अबुध पशु पंखी !! मनुष्य तो अबुध नहीं है न !!! बहार से आता  है यह ! ये हमारी इच्छा नहीं है | अरे क्यों छेड़े जाते है ऐसे राग भंग वाले गीत !!! अरे यह राग को कौन तोड़ देता है !!यह राग भंग के समय करे भी क्या ? क्यों होता है यह राग भंग ?        बस यहाँ से ही पैदा हुआ है वितराग !! जहा राग बार बार आकर मोहित  करता रहेता है !! इसी लिए राग को छोड़ कर कर ध्यान का महत्व बना !! अवरोध स्थिति में ध्यान औषध बनता है