ज्योतिष में + और - मुख्य है इसीलिए चाहिए की मे ग्नेट याने की चुम्बकीय बाते समजे !मनुष्य भी एक प्राणी ही है किंतु बुध्धि ज्यादा होने से अहंकारसे अपनेको विशेष समजता है । वास्तवमे अभीभी खाना पीना सेक्स इत्यादि कई चिजोमे प्राणी के सामान ही चेष्टाये करता है । ग्रहोमे राशियों में इसलिए ही पुरूष स्त्री राश्यादी के वर्णन है ।
astrology the reading is a important part.there so many computarised programmes now available.the maths is changed now.the old reading method was based on the maths which was at that time.mostly was based on grah lagaviya style!using the method of that timed reading books on newly method aplying kundali may cause different!!there are somany dates in which the planets have different position of zodiac sign even in horoscope according to grahlagav planets and the new pratyaksa ganit!these cause problem in forcasting!this was discussed by pt.l.k.jha in his book vyatipat and dashya panchang which was written by bhakar joshi.
देखने जाओ तो ज्योतिष वस्तुत: वेदांग है । अतः खुबिकी बात यह है की वेदका मूल नही समज़ना है।पहेले जो ब्राह्मण विद्वान् थे वो ही इस शास्रामे थे। किंतु अबका हाल कुछ ऐसा हुआ है ।जो ब्रह्माण्ड का ब नही जानता उसको इसमे बिठाते है। इसीके कारण ज्योतिष विद्याका मूल कहाँ है ? और कही चला जाता है !ज्यादातर लोगोने इसको पूर्णतय धंधा बना दिया है.वास्तवमे यह वेदान्त है. ध्योतिती यत तद ज्योति: ज्योतिषं ऐसा निरुक्त में कहा है । जैसा की बृहद पराशर होराशास्त्र में एक श्लोक है पंचम गुरु यदा स बहुपुत्री ऐसा है तो अर्थ किया है पंचम गुरु होने से बहु लड़किया होगी। यह ग़लत है क्योकि जैसे बहु ज्ञान होनेसे बहुज्ञानी वैसे ही बहु धन होने से बहुधनी उसी तरह बहु पुत्र होने से बहुपुत्री ऐसा अर्थ है । आजकल हाल ये है की कोई भी लेखक बन जाता है। अरे ख़ुद बड़ा मंडल बनाके बीबनाबी बना लेता है!! मेडल ले लेता है !! नौकरी में छात्र नहीं होते है तो व्याकरण प्राध्यापक ज्योतिष का विषय पढ़ा लेता है और अपनी वर्ग संख्या दिखा कर सैलरी ले लेता है !! । इससे शास्त्र की बात नही बनती। पैसा कमालेना और शास्त्र दोनों भिन्न है। इ