अपने मन को छलने वाले को क्या कहे?
सब देखने जाओ तो अपने हिसाब से चलते है !! हिरन गति मान है !! हाथी स्लो है !! कछुआ भी स्लो है !! खरगोश तेजी से दौड़ता है !! किन्तु अहंकार में खरगोश हार जाता है और कछुआ जीत जाता है !! है न कहानी !! कोई पुरे जीवन अपनी हैल्थ में खोया रहता है !!कोई मै और मेरी फेमिलि बस !! कोई पुरे समाज में अपने नाम के लिए जीता है !! कोई पुरे देश में !! कोई पुरे विश्व में !! बस यहाँ अंत नहीं है !! न है पैसे का !! न है कीर्ति का !! आखिर में तो यह तंदुरस्ती के आधार से ही है !! वह सब अंत में बूढ़े होते बोलते है आरोग्य ही बड़ी चीज़ है !! और तंदुरस्त बूढ़े कहते है मन की शांति का महत्त्व है !! हम अपनी तस्वीरें रखते है न !! देखो हम बहोत सुखी है !!खुद को पूछने के बजाय दुसरो से जानना कोशिश करते है !! ( देखो मै सुखी हु न ?) !! संतोषी को यह प्रश्न नहीं होता !! और अहंकारी दुसरो से मन ही मन आगे हु ऐसा मन मना कर दुसरो को हीन मानता है !! एक पुराने गीत की पंक्ति अच्छी है ...