फैंटसी में खुद को अवतार मान लेने वालो की भी कमी नहीं है !!
आत्मा का सम्बन्ध मन अवं शरीर से समजे !! आत्मा से मन प्रकाशित होता है किन्तु मन को संसार भी चाहिए !! एक विराट अवकाश है !! अगर मन ये विराट अवकाश में गया तो इतना गति मान होते हुए भी कुछ नहीं कर पाता है !! जैसे देखो नींद में ! बेशुध्धि में !! अरे दिमाग के कुछ पुर्जे ज्ञानतंतु इधर उधर होते है तो बड़ा पंडित भी कुछ पहचान नहीं पाता !! कहा गई मन की ताकत !! सर्जरी कराइ है कोइदिन !! क्लोरोफॉर्म तुम्हे खुद भुला देता है !! बस इसी लिए ही संसारका अवरोध अच्छा लगता है !! वह सुख भी है और दुःख भी !! लेकिन वो दिशा शुन्य बेशुध्ध स्थिति नहीं है !! कई मुर्ख आध्यात्मिक साधक इसको ध्याना वस्था समज लेते है !! वास्तव में तो यह मेडिकल केस है !! यह मन जागृत अवस्था में ही हाथ में नहीं रख पाता वो भला कैसे यह चक्कर समाज पाएंगे !! और इसी प्रकार की फैंटसी में खुद को अवतार मान लेने वालो की भी कमी नहीं है !! यह संसार का अवरोध ही परमात्मा की बड़ी कृपा है !! इसीसे भागो मत !!