मन




मन एक अद्भुत चीज़ है । कुछ लोगोने मन के बारे में कई जानकारी दी है । ज्योतिष ने इसे जोड़ा है चंद्र से ! चन्द्रमा मनसो जातः । रमण महर्षि ने मन को चोर कहा है । ये पकड़ा नही जाता !


ज्योतिषशास्त्र में मन को चंद्र के साथ जोड़ा है। पंच  भूत मंगल बुध गुरु शुक्र शनि जो है वह अग्नि भूमि आकाश जल और वायु है । आत्मा मन है राहू केतु ग्रह नही है । अवरोध और गति की रिधम  न्यारी है !


अवरोध राग जगाये तोहे
 हं यं रं वं लं मन आतमजी


ब्राह्मणको मूर्ति पर प्राणप्रतिष्ठा करते हुए देखेंगे तो इन बीजो की सुनाई होगी ! कर्मकांड को कुछ बिन समज लोगोने उल्टा चित्र डाला है ! अब मानलो योग को तो यह बिज मंत्रो सुनाई देंगे । अगर आप योग  को वैज्ञानिक मानने लगे है तो कर्मकांड के भीतर भी चले जाए तो यह बात समज में आएँगी ।वास्तव में कर्मकांड वैज्ञानिक द्रष्टि से देखना जरुरी है !!





कुछ धर्मं का धंधा करने वाले अत्यन्त चालाकी से अपने आश्रमों मंडलों का व्यवसाय बनाये रखने के लिए आपके अन्दर ही छिपे परमात्मा तत्त्व को विसारने के लिए कम करते रहे है और करते रहेंगे !! इसीलिए सर्व श्रेष्ठ गृहस्थआश्रम में ध्यान दे । आज कल गुरु का व्यवसाय ऐसा बना है की अपना व्यवसाय कही और न चला जाए यह भय छुपा रहता है ! कलियुग में यही तो बात है ! दत्तात्रय के २४ गुरु थे ! मतलब सच्ची जानकारी को महत्व दे । जो ख़ुद को बाँध देता है उसे क्या कहे ? गुरु तुम्हारे अन्दर ही छिपा है !! मन को जित नही सकोगे लेकिन वश तो जरुर हो सकता है ! ! या तो उस चोर का महत्व ही भुला सकते हो !!

मन गतिमान है । क्या उत्तेजना सुख है ? आज उत्तेजना गेम में ,फिल्मोमे , न्यूज में जहाभी देखो !! अरे डरा के उत्तेजना पैदा कर ने से तुम्हे आनंद मिलता है !! ऐसी भी गेम बड़ी चलती है !! लेकिन यह उत्तेजना ये सुख नहीं है !! जुए में जितने से उत्तेजना से आनंद होता है !! क्या यह आनंद है ? यही मन की गति से प्रश्न उठता है !!बुध्धो ने शांति को महत्त्व दिया है । और डाक्टरों ने भी नींद की गोली देना उचित समजा है उत्तेजित को !!!


काम: एषा: क्रोध: !! काम ही क्रोध का रूप है !! क्रोध गति है !! यह तो संसार का रहस्य है !!!



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