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मई 1, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ध्यान

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वैसे देखने जाए तो ध्यान एक विश्राम है !!ध्यान के समय में कुदरत को इधर उधर बिखरी हुए को जैसे योग्य स्थिति में पुनः आ जाने की अनुकूलता मिल जाती है ! प्रत्येक ध्यान के समय नया उदय =विकास करने की शक्ति मन एवं शरीर दोनों में आती है ! और ध्यान के बाद प्रथम सत्व गुन ही प्रगट होता है !इस महाकाल के नृत्य की गूंज को सुनकर जो बेध्यान बन जाता है वो ध्यानी है !!

अनुभूति

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डर से मुक्त होना है तो जो ज्ञान फेले जरुरी है वो है आत्म ज्ञान तू सत्य से भिन्न ही है ! साथ साथ अन्य के जो भी तत्व है वो तेरेमे भी है !इसीका तुजे ज्ञान है !फ़िर भी अन्य तत्व विभिन्न रीतो से पड़े हुए है !!सर्व का मूल तो एक ही है ! किन्तु यह एक और अनेक के बिच में काल - भुत है ! फिरभी काल की असर बिना का वो तत्व आज भी मौजूद है !!! किन्तु यह अनेक जो एक बने तब ही इसीकी अनुभूति हो सकती है ! जो अभी अशक्य है । इसी लिए वो जो मौजूद है उस इश्वर को जागृत कर !! या तो उसकी अनुभूति कर !!! दुनिया तो साधन है प्रभु को पूजने के लिए अद्वैत के ज्ञान बिना द्वंद का बहस होता ही रहेगा यही तो माया है !अरे तेरे और उस तत्व के बिच थोड़ा सा भी भेद नज़र अत है तब भय पैदा हो जाता है !तू ख़ुद को ही ढूंढ रहा है !! जैसा भी मन वश हो जाए तुरंत ही उसे योग्य कर्म में जोड़ देना होगा नही तो वो तुमको खा जाएगा !! कर्म तो मन को वश में रखने के लिए ही है !! और यह देह रथ को चलने के लिए !! अमन तो अदभुत कृति है प्रभु की माया की !!!प्रभु के बहोत कम होंगे वहा तक तो जीवनों के नम होंगे ही !!! इसीलिए कहते है -ज्ञानी जन्म लेता है और मरता भी