ब्राह्मण

 जैसे  मंदिरो में देवो की प्रतिष्ठा होती है वैसे ही ब्रामण की जनोई में इन देवता ओ की प्रतिष्ठा होती है !!


























शिखा ज्ञानमयी यस्य उपवीतं च तन्मयं ।
ब्राहमण्यम सकलं तस्य इ ति ब्रह्म विदोविदु: ॥
इदं यज्ञोपवितम तु परमम् यत परायणं ।
स विद्वान् यज्ञोप विति स्यात स याग्यस्तम यजमानं विदु: ॥


ब्रह्मवेत्ता ये कहते है की जिसकी शिखा ज्ञान मय है और यज्ञोपवित भी ज्ञानमय है । उसका ब्रह्मणत्वं सम्पूर्ण है । यस ज्ञान ही यज्ञोपवित है । यही परम परायण है । इसीलिए ज्ञानीपुरुष ही सच्चा यज्ञोपवित धारीहै । यज्ञरूप है । और उसे ही यजमान कहते है ।

यज्ञोपवित जब ब्राह्मण  धारण करता है तब उसमे देवताओ का आवाहन किया जाता है !! सर्प,अग्नि,सोम,प्रजापति,विश्वेदेवा,पितृ,अनिल,सूर्य,ॐ,ब्रह्मा,विष्णु,महेश !!! इन सब विविध शक्तिओ(देवता ओ ) की आवाहन करके उपवीत में स्थापनकी जाती है !!
यज्ञोपवित एईसी वैसी चीज़ नहीं है !! अरे आप घरमे भगवन के फोटो रखते है तो यह तो देह घर की बात है . जनोई धारण करना तो ज्ञान से करना उचित है !!

(ब्रह्मोपनिषद से )
शांत: संत: सुशिल: च सर्वभुतहिते रत: ।
क्रोधं कार्टू ना जानाति सा वेई ब्रह्मण उच्यते । ।
(धन्वन्तरी)
अग्निहोत्रं तप: सत्यम वेदनाम चैव पालनं ।
आतिथ्यम वैश्वदेवाश्चा इश्त्मित्य्भिधियते । ।
(अंगीरा)
माता पिता के जीवन में पुरातन कालमें दो ऐसे प्रसंग होते थे जिसमे  आंखोमे आंसु आ जाते थे ! लग्न प्रसंग में जब कन्या विदा होती है !! और दूसरा  ७ - ८ साल के बच्चे को उपनयन संस्कार कर के गुरु के वहा शिक्षा प्राप्ति के लिए भेजना !!!  यह बच्चा अब २५ साल का होगा तब देखने मिलेगा इसी बात को ले कर दिल रोने लगते थे !! ध्येय प्राप्त न हो वहा तक रुको मत --कहते है स्वामी विवेकानंद !!
उप याने पास  नयन याने ले जाना .
शिक्षा क्षेत्र में गुरु उसे सक्षम बनता है ! विकट समय में अडग रहना शिख लेता है बालक !!
जन्मनो जायते शुद्र संस्कारात द्विज मुच्यते
वेदपाठी भवेत् विप्र ब्रह्म जानती ब्राह्मण
जन्मसे तो सब शुद्र ही है ! किन्तु संस्कार से द्विज  होते है .  जो वेद  को जान लेता है वह विप्र कहलाता है . और ब्रह्म को जानने से ब्राह्मण !!
तो उपनयन संस्कार से द्विज हो जाता है बच्चा !
जनोई क्या है !
यह तो मुख्या अंग है उपनयन संस्कार का.
सूत्र याने सुतर-कापूस का धागा . जनोई बनाने की भी निश्चित पध्धति है !! कापूस - कोटन से बनाये तर को हस्त के मूल से लेकर ४ अंगुल पर ९६ बार लपेटे .उसको ३ बार कर के दाहिनी और लपेटे.फिर ३ गुना कर के बाई ओर लपेटे. इसीसे ९ सूत्र होंगे. यह ३ धागों को इकठ्ठे कर के जोड़ दे. इसे ब्रह्म गांठन कहते है !!
तिथि के १५ शुक्ल अवं १५ कृष्ण पक्ष के दिन है. ७ दिन ,२७  नक्षत्र,२ तत्व ,४ वेद,३ गुण,३ काल,१२ मास ऐसे ९६ ब्रह्म ज्ञान के लिए रहते है , यह सतत कहते रहते है के तुम यह ब्रह्म के अन्दर ही हो !! उसे धारण किये हुए !! इसी लिए तो ब्रह्म सूत्र कहलाता है यह !!
इसी ज्ञान से अहंकार नष्ट होता रहता है ! और स्वयं परमात्मा की बने हुई एक कृति है यह ज्ञान से गौरव होता है जीवन के प्रति !! इसी लिए जनोई धारण किये हुए ब्राह्मण के आगे जुक जाता है यह मस्तक !!
जगत  नियंता परमात्म में श्रद्धा !! शास्त्रो का ज्ञान !! प्रकृति का रक्षण ,संस्कार का सिंचन  !! यही तो सबसे बड़ी देन  है समाज को !! ब्राह्मणों  के द्वारा !!
मेरे पिताजी ने कई लोगोको मार्गदर्शन किया है !! संस्कारो का बीज बोना यही तो कर्तव्य है ब्राह्मणो का !!
आइए  संस्कृति में छुपे सत्यो को उजागर करे !! इसे धर्मो से न जुड़े  !!इसके पीछे रही ग्रहस्थाश्रमो के विकास  तो समजे !! इसी लिए तो है नमो ब्रह्मण्य देवाय !!


कोई शक्ति सतत काम कर रही है इसका ज्ञान अपने आप श्रद्धा में पलट जाता है !!


 यं   यं चिन्तयते कामं  तं  तं  प्राप्नोति निश्चितं !!
ये देखो मन तो गति से दौड़ रहा है जहा मोड़ दो उस और पूरी गति से दौड़ने लगता  है !! और ब्रह्म उपदेश ही यही है तन्मे  मन: शिवसंकल्पमस्तु  मेरा मन सदैव कल्याणकारी कामो में जुड़ा रहे !!






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