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इश्वर हकीकत है की कल्पना

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विज्ञानं की नज़र सके साल पूर्व मैंने देखा है की विज्ञानं तो एक दिया है टोर्च बैटरी की तरह ! हमारे ऋषि  मुनिओ और आजतक के विज्ञानियो सभी ने सूक्ष्म  को अज्ञात ब्रह्माण्ड को माप लेने का थमा है उससे ही इश्वर की विराटता एवं सूक्ष्मता का ज्ञान यु ही हो जाता है ! आजतक मनुष्य को सिर्फ चन्द्र तक का थोडा कुछ ज्ञान है !! अरे कितने तारे है वो भी विज्ञान को मालूम नहीं है !! किन्तु इस सूर्यमंडल मै तो हम रह रहे  है वो पृथ्वी एक बूंद जीतनीदिखाई देती  है और ऐसे कई सूर्यमंडल आकाशगंगा के केंद्र की चारो और घूम रहे है !!! उसमे हमारा सूर्य एक दाल  के दाना सामान है !! पृथ्वी तो दिखाई ही नहीं देती !! ऐसे तो कई ब्रह्माण्ड है जो निब्युलाओ बनाते है और ऐसी कई निब्युलाये ये घूम रही है !! इससे बनते  कई ब्रह्माण्ड !! कोई केंद्र के आसपास घूम रहे है !! अरे भला अपनी निब्युला  भी दिखाई नहीं पाती !! यही हालत सूक्ष्मता मै है भी  !! पंचमहाभूत भी असंख्य परमाणु से भरा है ! केलसीयम ,कार्बन,ओक्सिजन  !!इसके भी  अणु में  इलेक्ट्रोन है!! जो घूमते  है नुक्लिअस के...

विभूति ज्ञान

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विभूति भासित भस्म क्षार रक्षा यह पञ्च भस्म है ऐश्वर्या के कारण से विभूति प्रकाश करने से भासित सर्व पाप के भक्षण से भस्म आपत्ति यो का क्षय करने से क्षार भुत प्रेत पिशाचादी संसार भय से रक्षण करने से रक्षा तापादी आधिदेइविक अधिभौतिक अध्यात्मिक तिन ताप त्वचा,मम्स ,रक्त,अस्थि,स्नायु,मज्जा छे कोष उपजना,होना, बढ़ाना, परिणाम होना,कम होना ,विनाश यह छ विकार भाव भूख तरस शोक मोह जरा मरण यह छ उर्मिया कुल जाती वर्ना गोत्र आश्रम रूप यह छ भ्रांति योग की कुछ बाते हत्पद्म की ८ पंखडी है . जिव जब पूर्व में होता है तब पुण्य में मति रहती है. जब अग्नि कोण में रहता है तब निद्रा आलस्य क्रोध और मूर्छा होती है. पश्व्हीम में क्रीडा करने की बुध्धि होती है . वायव्य में देशांतर में जाने की इच्छा होती है. उत्तर में विषय में प्रीटी होती है. इशान में द्रव्य लोभ और कमल के मध्य में वैराग्य विषयमे जाता है . ------------------- प्राणवायु को नासाग्र में धारण करने से प्राण का जय होता है. नाभिके मध्यमे धारण करने से सर्व रोग की निवृत्ति,पाव के अंगुष्ठ में निरोध करनेसे लघुता होती है. जो जिव्हा से वायु को पिता है वह श्रम ...

दर्भ की विशेषता

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संध्या पूजा में दर्भ ,कामला या रेशमी वस्त्र का आसनप्रमाण भूत कहा है !दर्भासन पर बैठने से विज भय नहीं रहता! प्रमंभुत आचार्य दर्भापवित्रपानी: शुचौ अवकाशे प्रन्ग्मुख उपविश्य महता प्रयत्नेन सुत्रानी प्रनायती सम । (महाभाष्य १ - १ -१ ) यहाँ श्री पाणिनि का पूर्वाभिमुख बैठना और दर्भ की अंगूठी से पवित्र हाथ की बात का वर्णन है । दर्भो य उग्र औषधि: तम ते बध्नामि आयुषे । (अथार्ववेदा १९ -३२-१ ) अर्थात दर्भा धारण करने से औषधि जेइसा प्रभाव और आयुष्य वृध्धि होती है !! त्वं भुमिमात्येशी ओजसा , तवं वेध्यं सीदसि चरुध्वारे । तवं पवित्रमृश्यो भरन्त तवं पुनिही दुरितानि अस्मत ॥ (अथर्व १९ - ३३-३ ) इस दर्भा में पाप दूर करनेका सामर्थ्य है । इसी लिए तो यज्ञ एवं पितृ पूजा और ग्राहनादी दोष से बचने में प्रयोग होते है !!इसकी दर्भ याने कुशमुद्रिका का प्राधान्य भी है ! य वाई वृत्रद बिभ्त्समाना अपो धन्वाद्भंत्य उदयन, ते दर्भा अभूवन । ...(७-२-३-२ ) इसीका उपाय के रूप में भी उपयोग हो सकता है !! केतु के होम में ज्योतिष में दर्भ का उपयोग कहा है !! केतु के निमित्त कुश की समिधा का प्रधान है शनि राहू केतु के दोष द...

जनता जनार्दन है ???

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जैसे धन का भार है वैसे ज्ञान का भी है ! अरे ! थोडा कुछ जाना तो अहम् पीड़ा बन जाता है ! याद रहे आप ज्ञानी है तो आपकी कदर होनी ही चाहिए यह बात की जीद ठीक नही !कई बार मूर्खो की सराहना करते लोगो को देखकर गुस्सा आयेगा यही तो माया है !!जनता जनार्दन है ??? हर बार समाज जनार्दन नहीं होता !! कई बार गुंडे जैसे को भी इलेक्शन में जीता देते है ये लोग !! गणेश की मूर्ति को दूध पिलाना !! राम के बनबास समय सितात्याग उस समय धोबी को मौन समति से देखकर सीताजी का जीवन अस्तव्यस्त इसी समाज ने किया है !!क्यों नहीं फटकारा था उस धोबी को !!पुरे समाज ने जेल तोड़ डाली होती तो सोक्रेटिस बच जाता !!इसीलिए येही बाते ज्ञानी के अहंकार को प्रगट में ला कर शिख भी देती है की यह तो दुनिया है !!! तेरी तो क्या ऐसे कही महान लोगो की क्या हालत करी है दुनिया ने !! ज्ञान का भार नहीं होना चाहिए !! बस ज्ञान से अज्ञान का दूर होना ही बड़ी बात है ! समाज में रहना है तो इसी समाज से पैसे और कीर्ति की कमाई करनी होती है !! किन्तु अपनी जो  बात है वो भी तो पैदाइश है नई !! इसी दुनिया को देना है !! तो रबिन्द्र नाथ का एकला चलो रे वोही सच्चा है...

आयुर्वेद उपवेद ज्योतिष वेदांग

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आयुर्वेद उपवेद ज्योतिष वेदांग-आयुर्वेद धनुर्वेद ऐसे चार उपवेदा है। और जो छ: वेदांग है उसमे एक अंग ज्योतिष है *। आयुर्वेद देह कीबाते करता है ! कहता है अन्न से रस बनता है यह धातु है !ऐसी सप्त धातु है !रस जो है वह छः ** है !वो # बनाते है पञ्च तत्वों से ! पृथ्वी जल से मधुर रस जो कफ करता है!अवकाश वायु से तिक्त जो वात करता है और अग्नि जल से लवण जो पित्त करता है !!वैसे वात पित्त और कफ की उत्पत्ति कही गई है !! अब ये जो पञ्च भुत है अग्नि-मंगल,भूमि -बुध,वायु-शनि,जल-शुक्र और आकाश -गुरु !! यहाँ ज्योतिष शुक्र वार को खट्टा खाओ या ना खाओ क्यों कहता है अप्प को समाज में आयेगा !! यही बात पञ्च तत्वों से देवो की है !! यह पंच बिज जो प्राणप्रतिष्ठा जब की मूर्ति की होतीहै तब बोले जाते है !! ऐसे यह देह सम्बन्ध बताता है !! यही बात रही कफ से तम:,पित्त से सत्व और वात से रज: गुणों की !!यह तन मन और संसार का सम्बन्ध खाना स्वभाव प्रकृति का समजना प्राचीन रूशी मुनि यो की दीर्घदृष्टि है !! ** रस,रक्त,मांस,मेद,अस्थि,मज्जा,वीर्य #!मधुर,अमला,लावन,टिकता,कषय,कटु *शिक्षा कल्प व्याकरण ज्योतिष निरुक्त एवं छंद

सतत घूमना भ्रमण मंथन !! क्यों !!!

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एक जगह मैंने पढ़ा था ! इस दुनिया में हमारे आने से पहले ज्ञान और धन तो था ही !! जो ज्यादा इकठ्ठा करता है वो ज्ञानी या तो धनी या इन दोनों से युक्त बनाने से कहलाता है !! सभी इसी होड़ में ज्यादातर लगे रह कर चले जाते है !! तो यह बात तो सीधी सादी बनी रही !! वैसे भी लेकर तो कोई जाता नहीं है !!मेरे पिताजी ने परमेश के भजन में बताया है की दूध से दही और दही से छास और छास से माखन बनता है वैसे मंथन करना तुम्हारा काम है !! ज्ञान का मंथन करो और इसी समाज को वापस करो !! તું હી તું હી રામ

कर्म फल !!

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कर्मोके फल होते ही है ! सब अपने नहीं ! हो भी !! ना भी हो !!! थोड़े भी !!!! लेकिन होते जरुर है !!!!! यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितं !!!