ज्योतिष फल रहस्य


मूलत: परमात्मा निर्लेप होते हुए भी कुछ पैदा हो जाता है वो है समय !!जिसे संसृत भाषा में काल कहा है । यही महाकाल शिव भी कहलाता है । इसीलिए तो पुराने लोग कहते है शिव स्वयंभू है । यही पैदा हुए ने बाकि अवकाश रहा है । यही है प्रकृति । अवकाश को गुरुतत्व बताया है । इसीकी - नेगेटिव बाजु है वोही तो नेगेटिव गुरु है । पुरानो में देव गुरु बृहस्पति एवं दानव गुरु शुक्राचार्य है। यही मैथोलोजी तो चलती आती रही है । यह बात ज्योतिष में लगे गुरु शुक्र के ग्रह से भी है। किन्तु यह बात अभी तक समाज में नहीं आती है की इतने विचक्षण लोगो के बिचमे यह अन्ध्श्रध्धालू लोग अज्ञान का जमला कैसे आ गया है !!बिलकुल मुर्ख या तो शास्त्रों का दुरूपयोग या तो केवल द्रव्य लालसा या तो अत्यंत चालाकी से खुद को पंडित बना थाना के चलाना यह सब पिछले पांचसो सात्सो सालो से घुसा हुआ ज्यादा दिखाई देता है ! जो आज भी चल रहा है ।
यह चित्र से सहज समज में आयेगा की कैसे पंचा महाभूत के सम्बन्ध को ज्योतिष ने जोड़ा है। जैसे मूर्खो को समजने के लिए राहू अन्धकार सूर्य को ग्रहण समय खा जाता है ऐसी कहानी में विज्ञानं की बात रखली है । वैसे कई रहस्य पुरानो में अन्धाश्रध्धालू के द्वारा छुपाये गए है । यही बात चन्द्र पुत्र बुध की है । यहाँ गुरु की नेगेटिव बाजु और चन्द्र का सम्बन्ध से पुत्र बुध है । अर्थात जल से पृथ्वी तत्त्व होने की बात है !! सूर्य पुत्र शनि यही वायु तत्त्व की बात है । क्योकि आकाश तत्त्व से प्रथम पैदा हुआ है वायु !!जैसे यहाँ शिष्य की बात है तो देखेंगे ज्योतिष शास्त्र में शिष्य और पुत्र का स्थान एक ही है । गुरु के शिष्य सूर्य चन्द्र की कहानी में यही बात है। शिष्य वो गुण पुत्र है । यही स्वभाव से सूर्य के गुण पुत्र है मंगल अग्नि तत्त्व और चन्द्र के गुण पुत्र है शुक्र जो है जल तत्त्व ! यही बात राशियों में देखेंगे !! १,५,९ अग्नि तत्त्व ,२,६,१० भूमि तत्त्व,३,७,११ वायु तत्त्व ,४,८,१२ जलतत्व !आप देखेंगे की स्त्री राशी चन्द्र की और है । और सूर्य की और पुरुष राशी ।
जन्मकुंडली  गोचर ग्रह  ये सब क्या है ??
बस इस बात को ध्यान में रखना यही तो बेज़ है !!


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