संदेश

होते है प्रभु के काम हमेशा !!

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ये मै  लिख रहा हु   आप पढ़ रहे  है !! फिरभी देखो दुनिया चल रही है !! तारे  ग्रह  नक्षत्र  !! अरे अत्यंत सूक्ष्म अणु  में इलेक्ट्रोन  घूम रहे है !! चल रहे  है सब !! कोई जबरदस्त काम चल रहा है  !! हम थे  न थे  होंगे न होंगे  लेकिन ये चल रहा काम  कोई कर रहा है !! ये महान कर्म सागर में हमारा ये छोटासा काम जैसे समंदर में  कागज की नैया !! तैरती जाती  है  !! बस यही सत्य है !! हमारे सामने !! इसका अविष्कार हो जाये यही तो अंतर की पुकार है !! एक बार समज गए फिर निश्चिन्त है !! चलो जुड़ जाय  !! प्रभु के काम !! होते है प्रभु के काम हमेशा !!

मंगल से डरो मत !! आधा डॉक्टर डेंजर है !!

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मै  ने मंगल के लिए कई ऑप्सन बताते आर्टिकल लिखे है !!

अपने मन को छलने वाले को क्या कहे?

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सब देखने जाओ तो अपने हिसाब से चलते  है !! हिरन गति मान  है !! हाथी   स्लो है !! कछुआ भी स्लो है !! खरगोश तेजी से दौड़ता है !! किन्तु अहंकार में खरगोश हार  जाता है और कछुआ जीत जाता है !! है न कहानी !! कोई पुरे जीवन अपनी हैल्थ में खोया रहता है !!कोई  मै  और   मेरी फेमिलि बस !! कोई पुरे समाज  में अपने नाम  के लिए जीता  है !! कोई पुरे देश में !! कोई पुरे विश्व में !! बस यहाँ अंत नहीं है !! न है पैसे का !! न है कीर्ति का !! आखिर में तो यह तंदुरस्ती के आधार से ही  है !! वह  सब अंत में बूढ़े  होते बोलते है आरोग्य ही बड़ी चीज़ है !! और तंदुरस्त बूढ़े कहते है मन की शांति का महत्त्व है !! हम अपनी तस्वीरें रखते है न  !! देखो हम बहोत सुखी  है !!खुद को पूछने के बजाय दुसरो से जानना कोशिश करते है !! ( देखो मै  सुखी हु न ?) !! संतोषी को यह प्रश्न नहीं होता !! और अहंकारी दुसरो से मन ही मन आगे हु ऐसा मन  मना  कर दुसरो को हीन  मानता  है !! एक पुराने गीत की पंक्ति अच्छी है ...

महापुरुष अपने उपदेश के लिए

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 देखेंगे  आप की सबको समजा नहीं पाते !! यही तो कमजोरी है हमारी !! महापुरुष अपने उपदेश के लिए कितने प्रयत्नशील है !! गुड  एन्ड  बेड  दोनों है लेकिन सब थोड़े सिलेक्ट करते है !! नहीं तो सभी  महापुरुष  बन जाते !! मीरा  जैंसीकी रानी एक ही होती है !! बस  अगर आपको अच्छा देह मन मिला है तो इसका उपयोग करना है !! कई तो बेचारे जन्म से दरिद्र दुखी मन या तन से निर्बल होते है !! उनसे अपेक्षा रखना  भी अनुचित है !! वो जो दयाके पात्र है उनसे अपने आपको  कॉम्पिटिशन या  ईष्या के दायरे में मत लो !!

फैंटसी में खुद को अवतार मान लेने वालो की भी कमी नहीं है !!

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आत्मा  का सम्बन्ध मन अवं शरीर से समजे !! आत्मा से मन प्रकाशित होता है किन्तु मन को संसार भी चाहिए !!  एक विराट अवकाश है !! अगर मन ये विराट  अवकाश में गया तो इतना गति मान होते हुए भी कुछ नहीं कर पाता  है !! जैसे देखो नींद में ! बेशुध्धि में !! अरे  दिमाग के कुछ पुर्जे ज्ञानतंतु इधर उधर होते है तो बड़ा पंडित भी कुछ पहचान नहीं पाता   !! कहा गई मन की ताकत !! सर्जरी कराइ है कोइदिन !! क्लोरोफॉर्म तुम्हे खुद  भुला देता है !! बस इसी लिए ही संसारका अवरोध अच्छा लगता है !! वह सुख भी है और दुःख भी !! लेकिन वो दिशा शुन्य बेशुध्ध स्थिति नहीं है !! कई मुर्ख आध्यात्मिक साधक इसको ध्याना वस्था समज  लेते है !! वास्तव में तो यह मेडिकल केस  है !!  यह मन जागृत अवस्था में ही हाथ में नहीं रख पाता  वो भला कैसे यह चक्कर समाज पाएंगे !! और इसी प्रकार की फैंटसी में खुद को अवतार मान लेने वालो की भी कमी नहीं है !!  यह संसार का अवरोध ही परमात्मा की बड़ी कृपा है !! इसीसे भागो मत !!

गति और दिशा तो निर्जीवो के पास भी है !!

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जगत में जीव और निर्जीव  दो विभाग है ! जीवित  में  चलन  हिलना है !! अब मानो की कोई जीवसृष्टि ही  न  रही। तो  निर्जीव  रह जायेगा।  तो उसमे पृथ्वी तारे सब होंगे।  तो यह सभी वैसे  थोड़े रहेंगे ? वो तो  रहेंगे  घूमते !! मतलब निर्जीवो में भी गति तो है ही।  दिशा भी है ! अरे छोटे से एटम में न्युक्लिअस प्रोटोन इलेक्ट्रॉनों का घूमते रहना !! बस यहाँ एक बात तय होती है गति और दिशा तो निर्जीवो के पास भी है !! ये कोई मनुष्य की शोध नहीं है !! निर्जीव भी बना है अनेक एटम से और सजीव भी बना है अनेक एटम से !! और जगत की सबसे छोटी चीज़ जो आज तक समज में आई है यह एटम ही है !! एक बात खास करके याद रहे " निर्जीवो के समूहों से जीव  बनता है !!  जीवो से  निर्जीव नहीं बनता है !!" निर्जीवो इग्नोर  क्यों करते है   ?   पत्थरो से बाते करते थे किशोरकुमार !! लोग हँसते थे !! मुल्लानसरुद्दीन जाते थे अपने गाव बड़े पत्थर  शिलको   मिलने  !! और दुःख की बात ये है ज्यादातर अध्यात्मिक उपदेशक गुरु ओ क...

सज्जन के साथ कुदरत है की नहीं !!

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एक बार एक साधु ने देखा तो एक नाली के पानी में एक बिच्छु डूब रहा था।  साधु को दया आई !! उसे बचाना कर्तव्य है।  यही बात को लक्ष्य में रखते हुए  धीरे से अपने हाथ से उसे उठा लिया !! जैसे उसने उठाया तो बिच्छु ने उसे डंख मारा !! वो हाथ से छूट कर फिर पानी में जा गिरा !! किन्तु साधु ने फिरसे उसे निकला तो उसने फिरसे डंख मारा !! साधु का सिद्धांत था दुर्जन भले अपना स्वभाव न छोड़े सज्जन को अपना स्वभाव नहीं छोड़ना !! बस उसने फिर कोशिश की !! बिच्छू ने फिर डंख मारा!! साधु कराह ने लगा !! हाथ में पीड़ा बढ़ गई ! लेकिन देखो !! सज्जनो का स्वभाव !! ऐसे दर्द वाले हाथसे पूण: कोशिश करने लगा !! और वो बिच्छु डंख मारता गया। यह कहानी कुछ लोग खत्म कर देते है यह गलत है !! सज्जन सज्जनता छोड़ता नहीं ! दुर्जन दुर्जनता छोड़ता नहीं !! बात यहाँ रुकती नहीं है !! साधु का हाथ बरी बरी डंख के ज़हर से जूठा हो गया !! और वो हाथ से काम करना रुक गया !! और बिच्छु नाली में डूब कर मर गया !! अब बोलो सज्जन के साथ कुदरत है की नहीं !!