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करमन कि बलिहारी !!!

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किस्मत और कर्म के बारे में अगर कहे तो अच्छी किस्मत वाले फल मिलता ही है !! किन्तु अच्छे कर्म   करने वाले को फल मिले या न मिले  ये दोनों चांस रहते है !! हा अच्छे कर्म करने वाले को एक संतोष जरुर रहता है कि उसने कुछ किया तो है ही !!!  दो   मीत्र  एकबार जंगल  में रास्ता भूल गए !! बहोत चल कर थक गए !  शाम हो गई !! किसी पेड़ पर रह लेंगे यह सोच कर  रात  को जंगल  में गुजरना मुनासिब माना ! एक कर्म वादी था उसने सोचा चलो खाने के लिए कुछ फल ढूंढ  लाये !! दूसरा किस्मतमे मानता था उसने कहा हमारी किस्मत ही खराब  है मुजे तो  अब कही नहीं जाना।   आराम करूँगा ! कर्मवादी तो चल पड़ा ! कुछ खाने का फल वगैरह लेके आया।  दोनों खाने बैठे।  कर्मवादी सोचने  लगा किस्मत ही सही है !! ये आराम कर के बैठा रहा मै  कर्म करके फल लाया और ये मजे से खा रहा है !!किस्मत  में मानने  वाला सोचने लगा कर्म ही सही है देखो इसने कर्म किया तो खाना मिला !!! इसीलिए तो कहा है न मूर्ख  मुर्ख मौज करत है पंडित फिरत  भिखारी ये करमन...

शब्द द्वारा लाखो कि संख्या

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अंको  की वाम गति !! ज्योतिष में सबसे बड़ी बात यह है पुराने ग्रंथो में शब्द द्वारा लाखो कि संख्या कि बात कि गई है ! हमारे पास आर एंड दी में इन्वेस्टमेंट कम है !! अवं ब्राह्मण जैसी उच्च ज्ञानी जाती को अपना व्यवसाय छोड़ना पड़ा है !! और थोडेकुछ भी है उन में ज्यादातर निर्बल ज्ञान वाले रह रहे है !! संस्कृत जानने से फायदा क्या ?? बस  राजकीय नेता और समाज का यह परिणाम आहि गया है !! आर्य भट्ट ने खगोल में करोडो जोजन को माप कर अद्भुत युक्ति का प्रयोग किया !!

जीवन से कैसा छुटकारा

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इस गीत में एक सुन्दर  पंक्ति हा !!जीवन से कैसा छुटकारा है नदिया के साथ किनारा !! कुछ लोग जीवन संसार को नफ़रत करके जिम्मेदारी से भागते है !! उसके अच्छा सुनाया है !! दूसरी एक सुन्दर पंक्ति है ज्ञान कि सीमा जैसा ज्ञानी गागर में सागर का पानी !!

मिले या न मिले !!

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भाग्य और कर्म में यह बात है की कर्म हम कर सकते है !! और कर्म करने से देह और मन को व्यायाम मिलता है !! और व्यायाम जरुरत से ज्यादा कम नहीं होना चाहिए यह नियमन  जरुरी है !! फल की बात तो प्रकृति के अधीन है !! मिले या न मिले !! बस यह सत्य है !! इसीलिए चिंतन,मार्ग दर्शन ,अध्यात्म,ज्योतिष जैसे विषय जिन्दा ही रहेंगे !! आशा उत्साह जीवन है !!  शंका ,संशोधन,दृष्टी कर्म के लिए जरुरी है और  कर्म के बिना जीना संभव नहीं है इसी लिए विज्ञानं का विकास होता ही रहेंगा !!! बस यही तो है माया !!!

कर्म की गत न्यारी

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मनुष्य  की स्वतंत्रता कितनी और कहातक  ये कोई भी नहीं कह सकता  न कोई विज्ञानी न फिलोसोफेर !! गीता  में भाग्य का नाम दैव कहकर श्लोक में वर्णन  किया हुआ है !! वैसे देखने जाओ तो हमारी स्वतंत्रता प्रकृति के अधीन है !!सब अपनी अपनी प्रकृति के हिसाब से कर्म करते रहते है !! अभ्यास अनुभव लेते रहते है और उसी हिसाब से अपनी निर्णय शक्ति अनुसार कर्म किये जा रहे है !! क्यों दुष्ट के घर पैदा हुआ और क्यों धनवान के घर पैदा नहीं हुआ ?? यह सब प्रकृति की रचना के अधीन है !! कर्म का चक्कर समजना कठिन है !! भाग्य में होगा वह होगा ऐसा मान कर रहना इसीका अर्थ भी यही होता है की जो भी किये हुए कर्म है उसका जो भी फल मिलनेवाला है वह मिलेंगा !!! कर्म की गत न्यारी !! हर एक कर्म का भी यही हाल है !! आधा  है चन्द्रमा !!! जैसे आपको बोला एक टांग पर खड़े रहो आप खड़े हो जाएंगे ।अब कहा गया दूसरी भी टांग उठालो नही कर सकेंगे !! कारण जैसे एक टांग उठाते है वैसे दूसरी बध जाती है !!मतलब आप एक टांग उठाने को आज़ाद है लेकिन जैसे एक उठाते है दूसरी बध जाती है !! यही खेल है कुदरत का !! कुछ भी पुरुषार्थ करो ...

दुनिया चलती रही है !!

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यहाँ बहोत कुछ शिखने मिलाता है !! हम देखेंगे की दूध से दही बनता है !! अनेक बेक्टरिया जन्म लेते है उनके बच्चे को छोड़ कर मर भी जाते है ! पूरा दूध बेक्टरिया से भरा हुआ बन जाता है इसे दही कहते है !! राम कृष्णा बुध्ध महावीर सिकंदर नेपोलियन सब आ कर गए !! दुनिया चलती रही है !! नए रूप धारण कराती है !!! दूध से दही बन जाता है !!  क्या हम बेक्तेरिया है !! हम क्या बना रहे है जनम मर कर ??? ये दही किसके लिए बन रहा है !! लेकिन बनता जरुर है !! हम इस दही बन रहा है उसीके एक अंग है !! बस यही गर्व ले सकते है !! हम कुदरत के अंग है !!  फिल्म दोस्ती के एक गीत में !! परमेश्वर ने ही यह सब को रचा हुआ है ! मै ऐसी वैसी चीज़ नहीं हु उसकी बने हुई हु ! जिसने सबको रचा  अपने ही हाथ से उसकी पहेचान  हु मै  तुम्हारी तरह !! यह अद्भुत माया है इसे समजने के बाद हम ज्ञानि हो सकते है !! लेकिन इसे समजना आसान नहीं है !!

इश्वर सत्य है अवं एक ही है !!

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इश्वर  सत्य है अवं एक ही है !! चाहे अल्लाह कहो परमात्मा कहो  गोड़ कहो कुछ भी कहो !! जैसे द्राक्ष कहो अंगूर कहो या ग्रेप कहो !! हर एक ने इसी ताकत महानता को जीवन तरीके में जोड़ ने की रीते बनाई है !! मनुष्य की यह महान  फिलोसोफी  है !! धर्म जैसे एक ही बात को समजने की रित है !! लेकिन ये इश्वर से बड़ा कभी भी नहीं हो सकता !! जैसे एक ही खाने की चीज है और चमच अलग अलग तरीके के !! दुःख की बात यह है की आज भी मनुष्य चमच को लेकर युध्ध में उतर आते है !! यह मुर्खता ही है !! यही बात पोलिटिकल पार्टी यो में देखि जाएँगी !! पार्टी अनेक है लेकिन देश तो एक ही है !! और पार्टी देश से बड़ी कभी नहीं है !! देश के अन्दर पार्टिया है !!!बनेगी और नाश होती रहेंगी !!यही बात धर्मो के बारे में भी है !! इतिहास इसका साक्षी है !! कई धर्म बने और नष्ट भी हो गए है !! लेकिन इश्वर नहीं !! धर्म और पक्ष के पीछे इतने पागल न बनो की सत्य परमात्मा को भूल जाओ !!! एक गीत की पंक्ति मुझे बहोत याद रहती है - युग युग में बदलते धर्मो को कैसे आदर्श बना ओगे !! संसार से भागे फिरते हो भगवन कहा तुम पाओंग...