सहजं कर्म कौन्तेय ......

शान्ति से क्रोध को मारों ।
नम्रता से अभिमान को जीतो ।
सरलता से माया का नाश करो ।
संतोष से लोभ को काबू में लो ।
अशुभ से नि वृत्ति और शुभ में प्रवृत्ती व्यवहार ये चारित्र्य है ।
तू देव था सतत आचारी देव सेवा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जीवन का मूल्य क्या है?

રક્ષાબંધન હોળી મુહૂરતો