पंचाग्नि विद्या


यहाँ हम पुरूष एवं स्त्री का कुदरत द्वारा उपयोग समज सकते है । कुदरत की माया अद्भुत है ! किंतु उसका काम बिल्कुल ताल बध्ध चल रहा है केवल अहम् के कारण हम सब स्त्री पुरूष के चक्कर में जुटे है !स्त्री आकर्षण कर के या चैलेंज करके पुरूष में आवेग क्रोध या काम द्वारा करवाती है ! और पुरूष पराक्रम करने को विवश हो जाता है ! और गति मन बनता रहता है !! यद् रहे जैसे डिस्कवरी एनीमल प्लेनेट में जानवरों का उपयोग कुदरत कैसे करती है वह देखते है तब यह भूल जाते है की हम भी एक प्राणी ही है !!! और कुदरत बिल्कुल आराम से हमारा उपयोग कर रही है !यह सत्य है !!
ज्योतिष शास्त्र में सुर्यादी ग्रहों के देवता और उनके तत्त्व कहे गए है !यह भी आत्मा सूर्य के देवता अग्नि एवं चंद्र मन के देवता वरुण है ! अग्नि मंगल के स्कंदा, भूमि बुध के विष्णु , अवकाश गुरु के इन्द्र ,जल शुक्र के इन्द्राणी एवं वायु शनि के ब्रह्म है !! यहाँ इन सबकी मंत्र में प्रार्थना है ।
इन्द्रनिश्चा स्कंदाविष्णु ब्रह्मेंद्रादी देवता ।
वरुनाग्नीदेवाश्चा कुर्वन्तु मम मंगलम । ।
पञ्च की विशिष्टता ही यही है !क्यो की वेदकालीन देवताओ ज्योतिष मुल्मे है !!
आध्यात्मिकता एक प्रक्रिया है । +वेमे ज्यादा है .जो उसका पुनः अस्तित्व होता है और वो भी माया से छुड़ाने के लिए ! किन्तु -वे के पास आकर्षण होने का कर्ण भी है परंतु वो खुद नहीं उसकी प्रक्रिया के पीछे रहा आशय है।
यही चीज करुना पैदा करती है और वो अध्यात्म प्रक्रिया सहानुभूति ! ये दोनों सद्गुण माया को गतिमान रखते है ! एक विकासमे जोड़ता है और दूसरा विकास को अवकाश देने के कम में मदद रूप बनता है ।

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