तुरीयं ते धाम


तिन अवस्थाये एक निद्रा दूसरी जाग्रत और तीसरी यह संसार !!आश्चर्य यह है की हम सब निद्रा के धाम से यह संसार में आते रहते है ! कमाल तो देखो जब निद्रा मै लीन होते है तब किसीकी भी चिंता नहीं रहती आग लगे या लोटरी लगे !! कुछ फर्क नहीं बनता !! इसी लिए निद्रा भगवती देवी !! ऐसा भी देवी के स्तोत्र में है ! इसीका उपियोग डाक्टर भी कर लेते है जिससे दर्दी को शांति मिले। और गम में डूबा शराबी बनकर घूम लेता है !! यह सब आरटीफिसियल निद्रा प्राप्त करके उपाय कर लेते है ! वैसे निद्रा देवी ही है । निद्रा में से बार बार संसार में आते है । इसीलिए तो जब मर जाते है तब कहते है चिर निद्रा में चला गया !किन्तु वैसे नहीं है। निद्रा में रह रहा जो वह वो संसारी के लिए जिन्दा है । उसको निष्क्रिय समाज के भी उसकी हाजरी तो गिन ही लेते है । कारण वो जागने वाला है !!

निद्रा जगत के आलावा एक जगत होता है वो है स्वप्न जगत !! स्वप्न में मिनीटो में कई दुनिया भी घूम लेते है । अक्स्मतो दुःख आनंद सब संसार की भाति उसमे अनुभव कर लेते है ! कमल की यह भी दुनिया है । इसी दुनिया से जब जागते है तो अच्छा स्वप्न खोने का दुःख होता है और बुरा स्वप्न टूटने से आनंद होता है । इसीसे तो बना है स्वप्न शास्र भी !! बस यह तिन अवस्था में घुमाते रहते है हम और जो इसी के आलावा चौथी दुनिया है जिसको संस्कृत में तुरीय शब्द कहा है !! यह दुनिया है ऐसी बात शिव महिम्न स्तोत्र में तुरीयं ते धाम ... कह कर प्रभु की दुनिया कही है !!

तात्पर्य यह है की हम यह तीनो दुनिया तो घूमते है !! छोड़ते बिछड़ते है !! अरे यहाँ फिर दौड़ने लगते है !! यही बात तुरीय के लिए क्यों नहीं !! यहाँ शरु होजाता है अध्यात्म विज्ञानं !!
एकबार यह सफर शरु होता है रुकता ही नहीं !! बाकि जीवन तो  नाशवंत ही है !!अध्यात्म दुनिया की यही खूबी है !!


टिप्पणियाँ

Rajendraprasad Vyas ने कहा…
http://en.wikipedia.org/wiki/User_talk:Rajendraprasadvyas
Rajendraprasad Vyas ने कहा…
IN LIFE WE CAN ENJOY THE LIGHT OF THE SUN.WHILE IN DREAM THE SOUL IS AT WORK !!

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