विभूति ज्ञान

विभूति भासित भस्म क्षार रक्षा यह पञ्च भस्म है
ऐश्वर्या के कारण से विभूति
प्रकाश करने से भासित
सर्व पाप के भक्षण से भस्म
आपत्ति यो का क्षय करने से क्षार
भुत प्रेत पिशाचादी संसार भय से रक्षण करने से रक्षा

तापादी
आधिदेइविक अधिभौतिक अध्यात्मिक तिन ताप
त्वचा,मम्स ,रक्त,अस्थि,स्नायु,मज्जा छे कोष
उपजना,होना, बढ़ाना, परिणाम होना,कम होना ,विनाश यह छ विकार भाव
भूख तरस शोक मोह जरा मरण यह छ उर्मिया
कुल जाती वर्ना गोत्र आश्रम रूप यह छ
भ्रांति
योग की कुछ बाते
हत्पद्म की ८ पंखडी है . जिव जब पूर्व में होता है तब पुण्य में मति रहती है. जब अग्नि कोण में रहता है तब निद्रा आलस्य क्रोध और मूर्छा होती है. पश्व्हीम में क्रीडा करने की बुध्धि होती है . वायव्य में देशांतर में जाने की इच्छा होती है. उत्तर में विषय में प्रीटी होती है. इशान में द्रव्य लोभ और कमल के मध्य में वैराग्य विषयमे जाता है .
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प्राणवायु
को नासाग्र में धारण करने से प्राण का जय होता है. नाभिके मध्यमे धारण करने से सर्व रोग की निवृत्ति,पाव के अंगुष्ठ में निरोध करनेसे लघुता होती है.
जो जिव्हा से वायु को पिता है वह श्रम और दह से रहित हो कर निरोगी होता है ऐसे करने सेनाभी मेले जाकर मास पर्यंत करने सेवायुसे पैदा हुआ पित्त का दोष नष्ट होता है .

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