वर्णाश्रम के बारे में

वर्णाश्रम के बारे में मैंने देखा है इसका अर्थ घट्न गलत किया है ! हरेक वर्ण  का अपन महत्त्व है !! अब देखेंगे कि ब्राह्मण मुख से है यह इसका कार्य उद्देश करता है।  यही बात क्षत्रिय को लागु होती है जिम्मेदारी और राज कार्य की।  वैश्यो को धन व्यहवार में जोड़ा है शुद्रो को सेवा में !जब भी राज्याभिषेक होता था तब चारो वर्ण सिहासन के पाया कि पूजा करते थे !! स्पर्श स्पर्शी कि बात स्वच्छता  कि बात है !! सेवा कार्य  वालो को शुध्धता के लिए ज्यादा कहा है इसमें इनके आरोग्य  कि बात है !! अभी भी आप किसी वास्तु पूजा में या यज्ञादि में देखेंगे आज भी ब्राह्मण कुछ पूजा भाग में सेवा करने वालो को अपने हाथ से टिका करके दीप बाली चार रस्ते पेड़ निचे रखवाते है !! तो वह छूता क्यों है !!मतलब स्पर्श स्पर्शी कोई चालाकी कि घुसी हुई चीज़ है ! चंडाल का स्तोत्र शंकरा चर्य का सुनो !!
http://www.youtube.com/watch?v=JXrGq_yS0B8

परमात्मा ने चार वर्ण का वर्णन किया है इनकी उत्पति सम्बन्ध बताया है !!
चारो वर्णो में शुद्र की  श्रेष्ठता वोही है के वो प्रभु के चरण से पैदा है !! ब्राह्मण मुख से !! क्षत्रिय बाहु से !! वैश्य उदर से ! और सारी  दुनिया छूती है प्रभु के चरण को !! यह शुद्र कि सेवा कि प्रसंशा  है !! जो लोग गलत जस्टिफिकेशन कर रहे वो वास्तव में देश  द्रोही है !!!
सिर्फ वोट के लिए अबुधो को अज्ञान बाटना !! 

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