Rajendraprasad Vyas: उपनिषद् मे




उपनिषद् में बहोत सी बाते कही गई है !! उसमे प्रभु के बारे में यमेवैष .... में जो वरन शब्द का प्रयोजन किया है उसका मै ऐसा अर्थ निकलता हु जो योग्य है । वरण का जो अर्थ जानना है तो कर्मकांड पूजा में ब्राह्मण पंडित कार्यो को बाट लेते है । जैसे आचार्य ब्रह्मा जप करता होता वगैरह !! इसी भाती हमें भी अपने प्रभु का वरण करना होता है !! इश्वरकी कल्पना मनुष्य की सबसे बड़ी उडान है !! तत्व चिंतको ने की बड़ी सेवा है । धर्मो सम्प्रदायों के मूल में यही तो चिंतन है !!





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