क्यों होता है यह राग भंग ?

हमारी इच्छाओ के अनुसार ही हो जाये !!!यह तो जुआरी जैसी बात बन गई !! यहाँ तो केवल राजा  रानी  या तो किंग क्रोस का सिक्का उछल कर नंबर देखना होगा | हम जो चाहे है वैसा नहीं होता है तो हम दुखी हो जाते है ,गुस्सा करते है !!बस प्रतिकुलताये हमें पसंद ही नहीं !! अरे ध्यान से देखो - यह अनुकूलता का भी लय बध्ध  ताल ही है | जब अनुकूल पवन चलता है तब हमारा सभी कम बड़ी आसानी से होता रहता है . जिसका हमें आनंद होता है . यह राग अच्छा लगता  है . किन्तु  जो प्रतिकूल होता है तब कोई काम  सीधा नहीं होता यह अराग है !! जो हमें पसंद नहीं है . कौन करता है यह सब  ? यही तो प्रकृति की माया है !! ऋतू ओ की मज़ा लेते है अबुध पशु पंखी !! मनुष्य तो अबुध नहीं है न !!! बहार से आता  है यह ! ये हमारी इच्छा नहीं है | अरे क्यों छेड़े जाते है ऐसे राग भंग वाले गीत !!! अरे यह राग को कौन तोड़ देता है !!यह राग भंग के समय करे भी क्या ? क्यों होता है यह राग भंग ?
       बस यहाँ से ही पैदा हुआ है वितराग !! जहा राग बार बार आकर मोहित  करता रहेता है !! इसी लिए राग को छोड़ कर कर ध्यान का महत्व बना !! अवरोध स्थिति में ध्यान औषध बनता है !! बेध्यान होने से दर्द का भूलना है शायद !!शराबी जैसे भले मेरे देह को नुकसान हो पी लेता है वो !!! यहाँ देखेंगे की बहार के ही तत्वों काम  कर रहे है !! प्रकृति माता उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करवाती है !! हम स्वयं भूल जाते है की हम तो प्रकृति के भाग अंश है !!
जब एक के बाद एक प्लानिंग नष्ट होते जाते है तब यह वितराग वाली बात समज  में आती है !! यही मुनि यो की फिलोसोफी है !
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