ज्ञान ज्योति में राम रे
तन दौड़ैत है मन ही फंसत है
हँसत आत्म ज्ञान रे
मन बुद्धि है लगाम ज्ञान की
ज्ञान ज्योति में राम
.......
ये तो मैं थोड़ा हु।ए पंच भूत सागर में ये मेरा राजू नामक देह प्रकाश है।प्रतिक्षण आवेग से दौड़ता !! ये लिखना तो इसी देह प्रकाश क्रिया का कर्म प्रकाश है !! कुर्वन्ति ते तू कर्म प्रकाशम !!
.....
हरी से दूर भयो मिली माया !!
कौन कहत तू काहे फसाया !!
....
ईश्वर से ईश्वर ।
हँसत आत्म ज्ञान रे
मन बुद्धि है लगाम ज्ञान की
ज्ञान ज्योति में राम
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ये तो मैं थोड़ा हु।ए पंच भूत सागर में ये मेरा राजू नामक देह प्रकाश है।प्रतिक्षण आवेग से दौड़ता !! ये लिखना तो इसी देह प्रकाश क्रिया का कर्म प्रकाश है !! कुर्वन्ति ते तू कर्म प्रकाशम !!
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हरी से दूर भयो मिली माया !!
कौन कहत तू काहे फसाया !!
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ईश्वर से ईश्वर ।
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