संदेश

सतत घूमना भ्रमण मंथन !! क्यों !!!

चित्र
एक जगह मैंने पढ़ा था ! इस दुनिया में हमारे आने से पहले ज्ञान और धन तो था ही !! जो ज्यादा इकठ्ठा करता है वो ज्ञानी या तो धनी या इन दोनों से युक्त बनाने से कहलाता है !! सभी इसी होड़ में ज्यादातर लगे रह कर चले जाते है !! तो यह बात तो सीधी सादी बनी रही !! वैसे भी लेकर तो कोई जाता नहीं है !!मेरे पिताजी ने परमेश के भजन में बताया है की दूध से दही और दही से छास और छास से माखन बनता है वैसे मंथन करना तुम्हारा काम है !! ज्ञान का मंथन करो और इसी समाज को वापस करो !! તું હી તું હી રામ

कर्म फल !!

चित्र
कर्मोके फल होते ही है ! सब अपने नहीं ! हो भी !! ना भी हो !!! थोड़े भी !!!! लेकिन होते जरुर है !!!!! यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितं !!!

तत्व फल

चित्र
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देखेंगे की पञ्च तत्वों की बात है । पश्चिम ने चर तत्त्व बताये है । चीनी ज्योति ष ने पञ्च बताये है किन्तु उसने लाकडा और धातु के साथ पानी,अग्नि, पृथ्वी तत्त्व बताकर पञ्च कहा है । यहाँ कोई जगह पर कुछ उल्टा सीधा समाजमे आता है ! अब भारतीय ज्योतिष में देखेंगे की राशी तो चर में ही बताई है !! जैसे पश्चिम में ! अग्नि पृथ्वी (भूमि) वायु वारी (जल) !! और इसे कई वर्षो से हँसक के नाम से जन्माक्षर में लिखे जा रहे है !! ग्रहों में सूर्य (आत्मा -अग्नि) ,चन्द्र (मन -जल), गुरु आकाश ,मंगल अग्नि, बुध भूमि ,शुक्र जल ,शनि वायु ऐसे है !आयुर्वेद उपवेद है ! आयुर्वेद ने भी पञ्च महाभूत की ही बात की है ! आकाश वायु से वात, अग्नि जल से पित्त ,और जल भूमि से कफ़ कहा है ! वात पित्त कफ़ आयुर्वेद में मुख्य है ! इसी चक्कर को समजने से ज्योतिष रहस्य समजा जायेगा !!जो विकार है वो इच्छा ,द्वेष ,सुख, दुख: ,पिंड ,चेतना और धृति है । आयुर्वेद की कमाल तो देखो ! पितृ सम्बन्ध की बात जो वेदों मै मिलती है उसमे पितृ ओ सम्बन्ध रुतु ओ से बता या है !

आश्रम का व्यवसाय !!

चित्र
आजकल देखेंगे की अध्यात्मिक सेवा दृष्टिकोण से आश्रम बनाते रहे है । कुछ लोग अध्यात्म रस ना होते हुए भी प्रवास में रुकने की सुविधा करने लगे है ! और आश्रम वाले इसे एक अर्थ साधन भी मानते चले है । यह पध्धति ब्राह्मन लोगो ने विद्या बेचीं नहीं जाती इस आधार से की होगी । मेरे बचपन में मैंने देखा है की मेरे पिताजी कुछ विद्यार्थी को घर में रखा करते पढ़ते थे ! खैर अब तो पढाई भी बिकने लगी है !! किन्तु शास्त्रीय चर आश्रम तो मौजूद है !! इसमें गृहस्थास्रम को महान आश्रम कहा है । सब अपने इसी आश्रम को सम्हाले बस यही भी एक श्रेष्ठ आश्रम सेवा है !! आश्रम तो मौजूद है

यथा स्वप्ने विहरति माया

चित्र
मैंने देखा है की निद्रा में स्वप्न आते है ! अर्थात स्वप्न को टूटने से जाग्रति होती है !! यह संसार ! और जाग्रति में सतत रज: गुणों से थक कर तम: का सहारा ले लेता है यह मन ! थका हुआ देह !! और पुनः आ जाती है नींद !! निद्रा !!सारी दुनिया की चिंता ये अस्त हो जाती है निद्रा में !! बस यही चक्कर चलता रहता है । स्वप्न में प्रकाश करता है आत्मा ! और जागृत अवस्था में सूरज !! दुसरे अर्थ में देखे तो निद्रा के पीछे बड़ा रहस्य छुपा है ! एक अद्भुत ख़ामोशी !! किन्तु शरीर को हिला के उठा सकते है ये जगत ! इसी तरह निद्रा ले जाती है किन्तु इन्द्रियो से जुडा जगत का सम्बन्ध स्पर्श करता है देह द्वारा !! मृत्यु से यह भिन्न है !! ---- आगे देखे तुरीयं ते धाम यह  देखेंगे तो आत्म  तत्व का महत्त्व समज में आ जाएगा !! हमारे एक चाचा थे !! उनके लैटर पेड़ पर कायम लिखा हुआ रहता था !! तुरी  यं   ते धाम !! मै  …आप.…और बाकी  का जो कुछ है वह सब। य़ह तीनो के सिवा  जो चौथा है वो !!! इसी बात को प्रभुकी जगह बताने का पुष्पदंत ने शिव महिम्न स्तोत्र  प्रयास किया है !!

ज्योतिष फल रहस्य

चित्र
मूलत: परमात्मा निर्लेप होते हुए भी कुछ पैदा हो जाता है वो है समय !!जिसे संसृत भाषा में काल कहा है । यही महाकाल शिव भी कहलाता है । इसीलिए तो पुराने लोग कहते है शिव स्वयंभू है । यही पैदा हुए ने बाकि अवकाश रहा है । यही है प्रकृति । अवकाश को गुरुतत्व बताया है । इसीकी - नेगेटिव बाजु है वोही तो नेगेटिव गुरु है । पुरानो में देव गुरु बृहस्पति एवं दानव गुरु शुक्रा चार्य है। यही मैथोलोजी तो चलती आती रही है । यह बात ज्योतिष में लगे गुरु शुक्र के ग्रह से भी है। किन्तु यह बात अभी तक समाज में नहीं आती है की इतने विचक्षण लोगो के बिचमे यह अन्ध्श्रध्धालू लोग अज्ञान का जमला कैसे आ गया है !!बिलकुल मुर्ख या तो शास्त्रों का दुरूपयोग या तो केवल द्रव्य लालसा या तो अत्यंत चालाकी से खुद को पंडित बना थाना के चलाना यह सब पिछले पांचसो सात्सो सालो से घुसा हुआ ज्यादा दिखाई देता है ! जो आज भी चल रहा है । यह चित्र से सहज समज में आयेगा की कैसे पंचा महाभूत के सम्बन्ध को ज्योतिष ने जोड़ा है। जैसे मूर्खो को समजने के लिए राहू अन्धकार सूर्य को ग्रहण समय खा जाता है ऐसी कहानी में विज्ञानं की बात रखली है । वैसे कई रहस्य प...

पञ्च भुत

चित्र
पञ्च तत्वों को लेकर देव पंचायत का प्राधान्य है । यही पंचा तत्त्व देह में भी है । देह में पंच तत्त्व का मूर्ति के रूप में जो है वो गृह देवाता है । ज्योतिष शास्त्र से लेना देनी  एवं मंत्र अवक ड हा  दी चक्रोसे नियत करवाकर देव पंचायत रखनी चाहिए। अग्नि देवी , भूमि शिव , वायु सूर्य ,जल गणेश और आकाश विष्णु पंचायत प्रसिध्ध है । अग्नि की जगह देवी ,वायु की जगह हनुमान,शनि वगैरह देवता ये अपनी श्रध्दा अनुसारत : रख सकते है। इसीके आगे है ग्राम देवाता। अब तो ग्राम देवता के कई मंदिर बनते गए है गावों  और शहरों में ! यही पंच तत्त्व की देह की स्तिति का वर्णन है यहाँ पर । बस सीधे शब्द में कहे तो यह समष्टि मंदिर है  अग्नि भूमि वायु वारी अवकाश का !! अगर यह न समज  ए तो गाँव  के मंदिर में पांच देव को समजो  !! अगर यह भी नहीं तो घर में देव पंचायत से समजो  !! आखिर में यह अपने देहमंदिर में तो समजो  !! डोंगरे महाराजने भी पंचदेव पूजा का माहात्म्य कहा है