दर्भ की विशेषता

संध्या पूजा में दर्भ ,कामला या रेशमी वस्त्र का आसनप्रमाण भूत कहा है !दर्भासन पर बैठने से विज भय नहीं रहता!
प्रमंभुत आचार्य दर्भापवित्रपानी: शुचौ अवकाशे प्रन्ग्मुख उपविश्य महता प्रयत्नेन सुत्रानी प्रनायती सम (महाभाष्य १ - १ -१ )
यहाँ श्री पाणिनि का पूर्वाभिमुख बैठना और दर्भ की अंगूठी से पवित्र हाथ की बात का वर्णन है ।
दर्भो य उग्र औषधि: तम ते बध्नामि आयुषे । (अथार्ववेदा १९ -३२-१ )
अर्थात दर्भा धारण करने से औषधि जेइसा प्रभाव और आयुष्य वृध्धि होती है !!
त्वं भुमिमात्येशी ओजसा , तवं वेध्यं सीदसि चरुध्वारे । तवं पवित्रमृश्यो भरन्त तवं पुनिही दुरितानि अस्मत ॥ (अथर्व १९ - ३३-३ )
इस दर्भा में पाप दूर करनेका सामर्थ्य है । इसी लिए तो यज्ञ एवं पितृ पूजा और ग्राहनादी दोष से बचने में प्रयोग होते है !!इसकी दर्भ याने कुशमुद्रिका का प्राधान्य भी है !
य वाई वृत्रद बिभ्त्समाना अपो धन्वाद्भंत्य उदयन, ते दर्भा अभूवन । ...(७-२-३-२ )
इसीका उपाय के रूप में भी उपयोग हो सकता है !!
केतु के होम में ज्योतिष में दर्भ का उपयोग कहा है !!
केतु के निमित्त कुश की समिधा का प्रधान है शनि राहू केतु के दोष दूर करने में !!



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