शान्ति


शान्ति...
बर्षोसे इसके लिए आयोजन व्यवस्था किए जा रहा हूँ । प्रत्येक व्यवस्था के अंतमे विश्रांति ढूँढता हूँ ! मिली क्या ? न ही मिलेगी ।कारण की शान्ति को ढूँढने की प्रक्रिया ही अशांति है । शान्ति हमारे अन्दर ही पड़ी है ! ! वो जितनी है उतनी को जतन करने का है और और बधानेकी है । अशांत तो तेरे पास आतेही रहते है ! शान्ति को पाने के लिए मनुष्य अगणित प्रयासो करता रहता है.विज्ञानं तो जिज्ञासु शंकायुक्त जन को ज्ञान करवाने के लिए है ।शांति  और  भगवन का चक्कर अद्भुत है  !! मन  मुरख तू  कहा फिरत है हरी तो तेरे पास  !!!

सवेरा  तो कोई और ही करता  है  जगाता है  कौन  ??  गहरी नींद में  जो खोया है उसको  !!!

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