ज्ञान की सीमा जैसा ज्ञानी गागर में सागर का पानी


ज्ञान की पूर्णता की जो सीमा दिखाई देती है वह तो मृगजल सामान हैइसीका अंत तो पूर्ण परमात्मा रूप है.दोड़ते दोड़ते थक कर मृग का प्राण चला जाता है वैसा ही है ! यहाँ से जो सीमा दिखाई देती है वह तो वहा जाने के बाद भी दिखाई देंगी !!यही तो अद्भुत खूबी है.सवाल तो यह खड़ा होता है की दोड़कर प्राण त्यागे या खड़े खड़े आनंद पूर्ण जीवन का मजा ले !! हे मृग शान्ति से जी ! इसीलिए तो जिज्ञासा को भी आवेग में स्थान मिला है ! !
माला सांसो साँस की भगत जगत के बिच
जो फेरे सो गुरुमुखी न फेरे सो नीच

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