सच ज्ञान



ज्ञान होने से ही सुख दुःख तिरस्कार वगैरह का अनुभव होता है। जैसे की किसीके मृत्युकी ख़बर जब मिलती है तब ही दुःख होता है । जैसे की उसके मरने के दस दिन भले हुए हो ! वास्तवमे तो वो मर गया था औसके बाद के दस दिन तो तुम्हे ऑस्की कोई फिकर न थी ! अपनी ही मस्ती में जीते थे भले वो मर गया था !अर्थात ज्ञान का यहाँ महत्व है और अज्ञान के कारण न दुःख होने की बात! !समय याने की कल का महत्त्व है यहाँ पर !कौनसे समय पर ज्ञान जगत है वोही यहाँ महत्व है!अतः अज्ञान का यहाँ महत्व दिखाई देता है !गहन निद्रमे हमारे होते समय दुनिया का कोई विचार नही रहता !इसीलिए तो अज्ञान को बेचने का व्यापार चला है ! जैसे क्लोरोफोर्म-शराब-बेशुध्ध कराने वाले व्यसन वगैरह !!अब अगर देखने जाए तो ज्ञान की विस्मृति ही करता है अज्ञान !ज्ञान का नाश नही होता। जो घटना घटी है वो तो घटी ही है ! ये बदलती नही है । खली कुछ पलों के लिए तुम्हे अज्ञान से ढँक देती है ये !इसीलिए तो गीतामे कहा है अज्ञानेन वृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ती जन्तवः । हमें प्रतिकूल ज्ञान पसंद नही है केवल अनुकूल ज्ञान ही पसंद आता है !!किन्तु यह सत्य नही है ।


यही अध्यात्म विषय की बात जो सबसे बड़ी है !! जो वास्तव में थे ही नही उसको है ऐसा मन लेना मोह है !वास्तव में जो है वो रहने वाले भी नही है यही साचा ज्ञान है जो किशनजी महाराज ने कहा है !!

एक में ध्यान देते है तब हम हजारों की ओर बेध्यान भी बनते है । बेध्यान से ध्यान और ध्यान से महाध्यान का परमात्म चक्र है ।

  • जब शान्ति या आराम की बात करते है तो आराम एक ऐसी चीज़ है जो श्रम करने वाला ही अनुभूत कर सकता है किंतु शान्ति के लिए कोई श्रम की जरुर नही रहती !!
  • तू मरता है उसके पहले तो तेरा शारीर जिससे बना है वो सब जीवित सेल मरते है -अरे ये सेल जो मरते है तो तू खा है ?

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