ज्योतिष में हम कहा ?
ज्योतिषशास्त्र वेदांग है । आयुर्वेद उपवेद है ! आयुर्वेद में देह की बाते है । ज्योतिष जगत मन देह आत्मा के सम्बन्ध की गति की बात करता है । अतः ध्योतिती यत तद ज्योतिः ज्योतिषं ऐसा निरुक्त ने कहा है ! सर्व परमात्मा मय य है । और माया भी परमात्मा में ही है । माया में जो परमात्म अंश विदित है वोही तो आत्मा तत्त्व है । माया युक्त आत्म तत्त्व ही अहम् है ! ऐसी ही माया में यह सब है। इसीमे पंच महाभूत अग्न्यादी है !यही तो देह में है ! बहिर्माया यह जगत है और अन्तः माया हमारा मन है ! जैसे माया प्रभु के अन्दर समजी नहीं जाती वैसे ही मन को हम पहचान नहीं सकते । आत्म तत्व तो प्रभु के अंश होते हुए सर्वत्र है । स्वयं माया ही खुद उसे उपयोग कर बढाती लगाती है किन्तु जैसे अन्धकार प्रकाश के सामने खुद विलीन होता रहता है वैसे ही माया की कहानी चल रही है !!http://www.youtube.com/watch?v=N8vmz-QkwDo
ये जो देह है वह इस जगत का भाग ही है ! इसीमे भी पंचभूत ही है !! खूबी ये है की यहाँ पैदा होते है वात पित्त और कफ ! जसी से देह चक्र चलता है ! अंदरूनी प्रकृति है मन ! वातादी के उत्पति कारण है पंच भुत ! और इसी का अन्तः प्रकृति मन का दिमाग की पैदाइश बुध्धि से बनता सम्बन्ध मन को जोड़ता है तिन गुणों से रज: तंम:तम: सत्व से !!
हमारे तिन लोक है या तो कहे अवस्था ये !! जागृत स्वप्न और निद्रा ! ये तीनो अवस्था में जागृत अवस्था में आत्मा मन पंचभूत अहम् बुध्धि कार्य रत है ! किन्तु निद्रा अवस्था में बुध्धि विश्रांति में चली जाती है यहाँ मन और अहम् का कोई काम नहीं रहता !!किन्तु स्वप्न वस्था में मन बुध्धि को लेकर जीवित रहता है !!
ज्योतिष में आत्मा को सूर्य ,मन को चन्द्र ,देह को लग्न ,पंचभूत अग्नि मंगल, भूमि बुध,वायु शनि,जल शुक्र और आकाश गुरु कहा है।
राहू केतु ग्रह हनहीं !! सूर्य तारा चन्द्र उपग्रह !! आत्मा के लिए सूर्य और मन के लिए चन्द्र का उपयोग ज्योतिष है !है । अब इन्ही चीजो सतवादी और कफादी कभी ग्रहों से सम्बन्ध है । और इसी से है ज्योतिष । वेदांग और उपवेद आयुर्वेद का संगम निराला है ! यहाँ रस शास्त्र ने जो स्वाद बताये है उससे उत्पन्न होते वात पित्त कफादी से देह सम्बन्ध है । यह लग्न कुंडली एवं भौमादी गृह सम्बन्ध का दर्शन करता है । इस तरह आत्मा मन देह का सम्बन्ध से गुण प्रदर्शन मालूम हो जाता है । बस इससे एक बात का पता चल जाता है की जन्मा कुंडली एवं गोचर ग्रहों से फल दर्शन एवं विकास की बात है। इसी बात ने मुहूर्त शास्त्र को दोहराया है । अच्छे समय मै कार्य प्रारंभ एवं उसके फल की बात बनती है .वैदिक समय मै पुन्यर्हा याने की यज्ञ एवं खेतमे बी बोना वो समय एवं ऋतु के खान पान के समय एवं आयुर्वेद मै ऋतु मै कफादी उत्पत्ति एवं ज्योतिष शास्त्र से रुतु निर्णय यह महत्त्व की बात पता चलती है !!
कई पूर्व आचार्यो ने जैसे कोष्टक बनाये है । और ये भी उन ज्योतिष छात्रो के लिए है जो तर्क शक्ति का उपयोग काम कर शकते है । जैसे आज कई ज्योतिषी है जिसको कुंडली बनाना नहीं आता है । सिर्फ निदान करते है । और पहले भी कई छात्र ऐसे थे जो पंचांग तैयार लाकर कुंडली बनाते थे । उसीके पहले कई पंडित थे जो खुद गणित पंचांग वेध ले कर बना लेते थे । आजकल कोम्पुटर के कारण यह और भी आगे बढ़ता चला है की फल निर्णय भी कोम्पुटर में भरे हुए ही है उसे कहते है !! पुराने ज्योतिष का कोर्स देखे तो उसमे ज्योतिष के साथ तर्क संग्रह भी था !!नोध - विदेशो के जन्माक्षर मै कई बार कोम्पुटर प्रोग्राम मै समर टाइम का सुधर नहीं किया दिखता है !!
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