स्त्री ओ में आकर्षण एवं टकटक करने की कला

जीवन गति है !! चैतन्य गति है !! जो अव्यक्त है !!जड़ में भी गति जरुरी है . जो  उसके अणु ओ में चैतन्य फैला कर प्रकाश फैलाती है . जड़ तो नाशवंत है !!इसीलिए तो
 + और - है !!  यिन  और याँग !! लओत्ज़े को समजो !! अर्धनारीस्वर की मूर्ति को समजो !!
स्त्री  ओ में आकर्षण  एवं   टकटक करने की  कला से तो पुरुषो  में काम  नाम का आवेग गति और क्रोध नाम का आवेग गति पैदा होती है !! यह दोनों आवेग गति के लिए जरुरी  है !!यही ही मन ये गति है वह  बात समज में आती  है !! अर्थात मन एक गति है वो मन तत्व है !! ज्योतिष  इसे चन्द्र से जोड़ा है !! आत्म तत्व  सूर्य को !!जैसे गुरु तत्व !! यह दोनों अवकाश में है !! और ज्योतिष में अवकाश है गुरु !!!
सेक्स का जन्म भी इसके पीछे का रहस्य है !!देव योनि में सेक्स नहीं है पारवती ने अपने मेल से गणेश बनाया था !! विष्णु ने नाभि से ब्रह्मा पैदा किया !! वगैरह !! आज भी अमीबा श्वेतकण वगैरह में पुरुष स्त्री नहीं होता स्वयं विभाजित होकर वृद्धि करते है !! बिल्ली कुत्ते मनुष्य़  वगैरह में एकत्व नहीं है !!+ और - अलग है !! पुरुष और स्त्री !! इसीलिए अकेली स्त्री या पुरुष अधूरा है इसीलिए अर्धनारिश्वर कि मूर्ति का रहस्य समजना  जरूरी है !! अपने बुढ्ढों  को हस देने से तो बहोत कुछ खोते रहे है !!


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