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ज्ञान धन माहि मनुज फसयो

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ज्ञान धन से दुनिया है। लेकीन यह सब तब तक है जब तक देह है। इसीलिए तनकी वेल्यु है ! किन्तु मन नही है तो बात नही बनती ! इसलिए इन्सान को चाहिये की मन मजबूत रक्खे !किंतु यह सब जिंदा है तो ही है !इसीलिए आत्मबल का महत्व है । इससे यह साबीत होता है आत्मा मन तन यह तीन मुख्य है । भारतीय ज्योतिष पध्दति वाले चंद्र मन तथा लग्न शरीर और सूर्य आत्मा इसीप्रकार का प्राधान्य रखते है। ज्ञानका सम्बन्ध बुध्धि से है ! और बुध्धि दिमाग से चलती है । बुध का सम्बन्ध बुध्धिसे है। यह बुध चंद्र पुत्र है ! धन प्रत्यक्ष है !जो पृथ्वी से सम्बंधित है !तो एक चैतन्य से जुड़ा एक जड़ से जुडा है ! धन समाजमे है तब कामका है और ज्ञान एकान्तमे हो या समाजमे दोनों जगह कामका है !! इसी लिए ज्ञानी को पहचानना भी अलग बात बन जाती है स्थिति सर्वदा रहत है ज्ञानी की गंभीर ! जानत बांके मर्म को संत कोई शूरवीर !!

भूतकाल को मान

कुछ ऐसे मानते है की भूतकाल बेकार है । और गया वो गया ! भविष्य से चकाचौध हो जाते है और अपने पीत्रुओं जिस पर खड़े है उसे कुछ गिनाते नही यह ग़लत है !!कारण यह हैकि भूतकाल ही ऐसा है जो प्रतिक्षण बढ़ता ही रहता है ! ये आप पढ़ रहे हो वो ही भूतकाल बन गया !! और भविष्यकाल प्रतिक्षण मरता रहता है !!अर्थात भूतकाल में दिन प्रतिदिन वृध्धि हो रही है ! और उसी पर हम जी रहे है ! इसलिए प्रतिक्षण नाशवंत भविष्य से आश्चर्य में मत गिरो । अपने पित्रुओ की गत स्वजनोकी खुबिओको पहचानो जो तुम्हारेमे युही सहज छुपी हुई है !! जिसके सहज उपयोगसे जीवन को खूब सरल बनाया जा सकता है !

सहजं कर्म कौन्तेय ......

शान्ति से क्रोध को मारों । नम्रता से अभिमान को जीतो । सरलता से माया का नाश करो । संतोष से लोभ को काबू में लो । अशुभ से नि वृत्ति और शुभ में प्रवृत्ती व्यवहार ये चारित्र्य है । तू देव था सतत आचारी देव सेवा
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ज्ञान की सीमा जैसा ज्ञानी गागर में सागर का पानी ज्ञान की पूर्णता की जो सीमा दिखाई देती है वह तो मृगजल सामान हैइसीका अंत तो पूर्ण परमात्मा रूप है.दोड़ते दोड़ते थक कर मृग का प्राण चला जाता है वैसा ही है ! यहाँ से जो सीमा दिखाई देती है वह तो वहा जाने के बाद भी दिखाई देंगी !!यही तो अद्भुत खूबी है.सवाल तो यह खड़ा होता है की दोड़कर प्राण त्यागे या खड़े खड़े आनंद पूर्ण जीवन का मजा ले !! हे मृग शान्ति से जी ! इसीलिए तो जिज्ञासा को भी आवेग में स्थान मिला है ! ! माला सांसो साँस की भगत जगत के बिच जो फेरे सो गुरुमुखी न फेरे सो नीच

शान्ति

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शान्ति... बर्षोसे इसके लिए आयोजन व्यवस्था किए जा रहा हूँ । प्रत्येक व्यवस्था के अंतमे विश्रांति ढूँढता हूँ ! मिली क्या ? न ही मिलेगी ।कारण की शान्ति को ढूँढने की प्रक्रिया ही अशांति है । शान्ति हमारे अन्दर ही पड़ी है ! ! वो जितनी है उतनी को जतन करने का है और और बधानेकी है । अशांत तो तेरे पास आतेही रहते है ! शान्ति को पाने के लिए मनुष्य अगणित प्रयासो करता रहता है.विज्ञानं तो जिज्ञासु शंकायुक्त जन को ज्ञान करवाने के लिए है ।शांति  और  भगवन का चक्कर अद्भुत है  !! मन  मुरख तू  कहा फिरत है हरी तो तेरे पास  !!! सवेरा  तो कोई और ही करता  है  जगाता है  कौन  ??  गहरी नींद में  जो खोया है उसको  !!!

ज्योतिष aadhyatma

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भाग्यवादमे नम्रता है। प्रयत्न वादमे पराक्रम है । नम्रतायुक्त पराक्रम आत्मप्रकाश का द्योतक है।
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कर्म अर्थात साधन !! समष्टि का कर्म है! the thoughts begin in mind।then the karma begin.so do the work in man first.and the thinking of that karma.that and mind inbetween them there is a time.experience it!If u dont have nothing vision about the futur if the good happening u will enjoy but not good then u will be herted.If u dont like this then try to look in to future-this probability will be helpfull in controloing ego and depression too!it is toudh to say future.u can not win the time!If u are a scholor then dont try to read your effect of the speach.It will be automaticaly as your experience!Future telling is nothing a new thing!many creatutre are doing this!they are telling showing sign about the seasons and nature.Human has memory limitations.Dogs can smell better than human!even very eye sight with eagle we know! कर्म अर्थात साधन ! कर्म समष्टि  लियेही होता है । ऐसा अगर नही होता तो उसका फल वगैरह साथ ले जाते जानेवाले और ख़ुद के आनंद के लिए भी कर्म करते है । इसलि...