संदेश

जनता जनार्दन है ???

चित्र
जैसे धन का भार है वैसे ज्ञान का भी है ! अरे ! थोडा कुछ जाना तो अहम् पीड़ा बन जाता है ! याद रहे आप ज्ञानी है तो आपकी कदर होनी ही चाहिए यह बात की जीद ठीक नही !कई बार मूर्खो की सराहना करते लोगो को देखकर गुस्सा आयेगा यही तो माया है !!जनता जनार्दन है ??? हर बार समाज जनार्दन नहीं होता !! कई बार गुंडे जैसे को भी इलेक्शन में जीता देते है ये लोग !! गणेश की मूर्ति को दूध पिलाना !! राम के बनबास समय सितात्याग उस समय धोबी को मौन समति से देखकर सीताजी का जीवन अस्तव्यस्त इसी समाज ने किया है !!क्यों नहीं फटकारा था उस धोबी को !!पुरे समाज ने जेल तोड़ डाली होती तो सोक्रेटिस बच जाता !!इसीलिए येही बाते ज्ञानी के अहंकार को प्रगट में ला कर शिख भी देती है की यह तो दुनिया है !!! तेरी तो क्या ऐसे कही महान लोगो की क्या हालत करी है दुनिया ने !! ज्ञान का भार नहीं होना चाहिए !! बस ज्ञान से अज्ञान का दूर होना ही बड़ी बात है ! समाज में रहना है तो इसी समाज से पैसे और कीर्ति की कमाई करनी होती है !! किन्तु अपनी जो  बात है वो भी तो पैदाइश है नई !! इसी दुनिया को देना है !! तो रबिन्द्र नाथ का एकला चलो रे वोही सच्चा है...

आयुर्वेद उपवेद ज्योतिष वेदांग

चित्र
आयुर्वेद उपवेद ज्योतिष वेदांग-आयुर्वेद धनुर्वेद ऐसे चार उपवेदा है। और जो छ: वेदांग है उसमे एक अंग ज्योतिष है *। आयुर्वेद देह कीबाते करता है ! कहता है अन्न से रस बनता है यह धातु है !ऐसी सप्त धातु है !रस जो है वह छः ** है !वो # बनाते है पञ्च तत्वों से ! पृथ्वी जल से मधुर रस जो कफ करता है!अवकाश वायु से तिक्त जो वात करता है और अग्नि जल से लवण जो पित्त करता है !!वैसे वात पित्त और कफ की उत्पत्ति कही गई है !! अब ये जो पञ्च भुत है अग्नि-मंगल,भूमि -बुध,वायु-शनि,जल-शुक्र और आकाश -गुरु !! यहाँ ज्योतिष शुक्र वार को खट्टा खाओ या ना खाओ क्यों कहता है अप्प को समाज में आयेगा !! यही बात पञ्च तत्वों से देवो की है !! यह पंच बिज जो प्राणप्रतिष्ठा जब की मूर्ति की होतीहै तब बोले जाते है !! ऐसे यह देह सम्बन्ध बताता है !! यही बात रही कफ से तम:,पित्त से सत्व और वात से रज: गुणों की !!यह तन मन और संसार का सम्बन्ध खाना स्वभाव प्रकृति का समजना प्राचीन रूशी मुनि यो की दीर्घदृष्टि है !! ** रस,रक्त,मांस,मेद,अस्थि,मज्जा,वीर्य #!मधुर,अमला,लावन,टिकता,कषय,कटु *शिक्षा कल्प व्याकरण ज्योतिष निरुक्त एवं छंद

सतत घूमना भ्रमण मंथन !! क्यों !!!

चित्र
एक जगह मैंने पढ़ा था ! इस दुनिया में हमारे आने से पहले ज्ञान और धन तो था ही !! जो ज्यादा इकठ्ठा करता है वो ज्ञानी या तो धनी या इन दोनों से युक्त बनाने से कहलाता है !! सभी इसी होड़ में ज्यादातर लगे रह कर चले जाते है !! तो यह बात तो सीधी सादी बनी रही !! वैसे भी लेकर तो कोई जाता नहीं है !!मेरे पिताजी ने परमेश के भजन में बताया है की दूध से दही और दही से छास और छास से माखन बनता है वैसे मंथन करना तुम्हारा काम है !! ज्ञान का मंथन करो और इसी समाज को वापस करो !! તું હી તું હી રામ

कर्म फल !!

चित्र
कर्मोके फल होते ही है ! सब अपने नहीं ! हो भी !! ना भी हो !!! थोड़े भी !!!! लेकिन होते जरुर है !!!!! यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितं !!!

तत्व फल

चित्र
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देखेंगे की पञ्च तत्वों की बात है । पश्चिम ने चर तत्त्व बताये है । चीनी ज्योति ष ने पञ्च बताये है किन्तु उसने लाकडा और धातु के साथ पानी,अग्नि, पृथ्वी तत्त्व बताकर पञ्च कहा है । यहाँ कोई जगह पर कुछ उल्टा सीधा समाजमे आता है ! अब भारतीय ज्योतिष में देखेंगे की राशी तो चर में ही बताई है !! जैसे पश्चिम में ! अग्नि पृथ्वी (भूमि) वायु वारी (जल) !! और इसे कई वर्षो से हँसक के नाम से जन्माक्षर में लिखे जा रहे है !! ग्रहों में सूर्य (आत्मा -अग्नि) ,चन्द्र (मन -जल), गुरु आकाश ,मंगल अग्नि, बुध भूमि ,शुक्र जल ,शनि वायु ऐसे है !आयुर्वेद उपवेद है ! आयुर्वेद ने भी पञ्च महाभूत की ही बात की है ! आकाश वायु से वात, अग्नि जल से पित्त ,और जल भूमि से कफ़ कहा है ! वात पित्त कफ़ आयुर्वेद में मुख्य है ! इसी चक्कर को समजने से ज्योतिष रहस्य समजा जायेगा !!जो विकार है वो इच्छा ,द्वेष ,सुख, दुख: ,पिंड ,चेतना और धृति है । आयुर्वेद की कमाल तो देखो ! पितृ सम्बन्ध की बात जो वेदों मै मिलती है उसमे पितृ ओ सम्बन्ध रुतु ओ से बता या है !

आश्रम का व्यवसाय !!

चित्र
आजकल देखेंगे की अध्यात्मिक सेवा दृष्टिकोण से आश्रम बनाते रहे है । कुछ लोग अध्यात्म रस ना होते हुए भी प्रवास में रुकने की सुविधा करने लगे है ! और आश्रम वाले इसे एक अर्थ साधन भी मानते चले है । यह पध्धति ब्राह्मन लोगो ने विद्या बेचीं नहीं जाती इस आधार से की होगी । मेरे बचपन में मैंने देखा है की मेरे पिताजी कुछ विद्यार्थी को घर में रखा करते पढ़ते थे ! खैर अब तो पढाई भी बिकने लगी है !! किन्तु शास्त्रीय चर आश्रम तो मौजूद है !! इसमें गृहस्थास्रम को महान आश्रम कहा है । सब अपने इसी आश्रम को सम्हाले बस यही भी एक श्रेष्ठ आश्रम सेवा है !! आश्रम तो मौजूद है

यथा स्वप्ने विहरति माया

चित्र
मैंने देखा है की निद्रा में स्वप्न आते है ! अर्थात स्वप्न को टूटने से जाग्रति होती है !! यह संसार ! और जाग्रति में सतत रज: गुणों से थक कर तम: का सहारा ले लेता है यह मन ! थका हुआ देह !! और पुनः आ जाती है नींद !! निद्रा !!सारी दुनिया की चिंता ये अस्त हो जाती है निद्रा में !! बस यही चक्कर चलता रहता है । स्वप्न में प्रकाश करता है आत्मा ! और जागृत अवस्था में सूरज !! दुसरे अर्थ में देखे तो निद्रा के पीछे बड़ा रहस्य छुपा है ! एक अद्भुत ख़ामोशी !! किन्तु शरीर को हिला के उठा सकते है ये जगत ! इसी तरह निद्रा ले जाती है किन्तु इन्द्रियो से जुडा जगत का सम्बन्ध स्पर्श करता है देह द्वारा !! मृत्यु से यह भिन्न है !! ---- आगे देखे तुरीयं ते धाम यह  देखेंगे तो आत्म  तत्व का महत्त्व समज में आ जाएगा !! हमारे एक चाचा थे !! उनके लैटर पेड़ पर कायम लिखा हुआ रहता था !! तुरी  यं   ते धाम !! मै  …आप.…और बाकी  का जो कुछ है वह सब। य़ह तीनो के सिवा  जो चौथा है वो !!! इसी बात को प्रभुकी जगह बताने का पुष्पदंत ने शिव महिम्न स्तोत्र  प्रयास किया है !!